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Internal Structure of Earth

पृथ्वी की आंतरिक संरचना परतदार है और व्यापक रुप से तीन परतों को स्पष्टतः पहचाना जा सकता है-

1.भूपर्पटी (Crust)

यह लगभग 100 किमी मोटी बाहरी परत है। यह पृथ्वी के आयतन का 0.05% है। भूपर्पटी का बाहरी भाग अवसादी पदार्थों से बना है। जिसके निचले भाग में अम्लीय प्रकृति का रवेदार, आग्नेय तथा रुपांतरित शैलें पायी जाती है। भूपर्पटी की निचली परत वेसाल्ट एवं अति—क्षारीय शैली से निर्मित होती हैं। महाद्वीप हल्के सिल्कि पदार्थों—सिलिका + एल्यूमिनियम (सियाल — Sial) से संघटित होते हैं जबकि समुद्रों में भारी सिलिका पदार्थों — सिलिका + मैग्नीशियम (सिमा —Sima) का जमाव होता है जो ऊपरी मंडल का एक भाग होते हैं।

2.मेण्टल (Mantle)

यह पृथ्वी की सतह में भूपर्पटी के बाद लगभग 100 से 2900 कि.मी. नीचे तक विस्तृत है। इससे पृथ्वी के आयतन में 16% निर्मित होता है। ऊपरी मंडल की बाहरी परत अंशतः भारी सिलिकामय होती है और प्लास्टिक पदार्थ की भाँति व्यवहार करती है जबकि आन्तरिक परत पूर्णतः भारी सिलिकामय और अति—क्षारीय शैलों से बनी होती है। भूपर्पटी एवं ऊपरी मंडल के मध्य की सीमा को विच्छिन्न सतह कहा जाता है। जिसकी खोज मोहरोवाइसिक द्वारा की गई थी। उन्हीं के नाम पर इस सतह को मोहो अथवा एम—डिसकाँन्टीन्यूटी नाम दिया गया है। इस प्रकार हल्के पदार्थों से निर्मित मण्डल में तैरते रहते हैं। मेण्टल को दो भागों में विभाजित किया जाता है। ऊपरी मेण्टल एवं निचला मेण्टल

3.केन्द्रीय भाग या अभ्यंतर (Core)

यह पृथ्वी की सतह के नीचे 2900 किमी. से लेकर 6400 किमी. तक विस्तृत है तथा पृथ्वी के घनफल का 83% निर्मित करता है। केन्द्रीय भाग अत्यंत भारी पदार्थों से बना है जो उच्चतम सघनता में संघटित है। यह भाग निकिल और लौह धातुओं से बना है। भारी मिश्रित धातुओं एवं सिलिका से बने एक संक्रमण क्षेत्र तथा केन्द्र को बाहरी परतों से पृथक् किया जाता है। यह दो भागों में विभाजित है जिसे बाहरी अभ्यंतर एवं आन्तरिक अभ्यंतर कहा जाता है।

पृथ्वी की आन्तरिक संरचना सम्बन्धी परिकल्पनाएं

पृथ्वी की आन्तरिक संरचना सम्बन्धी परिकल्पनाएं निम्न हैं —

1.स्वेस की परिकल्पना

स्वेस (1835—1909) नामक भूगर्भ शास्त्री ने पृथ्वी की रासायनिक संघटन के आधार पर पृथ्वी की ऊपरी परतदार चट्टानों के नीचे तीन परतों की स्थिति का उल्लेख किया है वे हैं — सियाल, सिमा, निफे
(1)सियाल (Sial)
यह परत महाद्वीपीय अवसादी शैलों से नीचे स्थित होती है। जो ग्रेनाइट से बनी हुई है। सिलिका (Si) एवं एल्यूमिनियम (Al) इसका मुख्य संघटक है। इसका औसत घनत्व 2.9 है तथा परत की मोटाई लभग 50 से 300 किमी. के बीच होता है।
(2)सिमा (Sima)
यह सियाल के ठीक नीचे पायी जाती है यह भारी, वेसाल्ट, आग्नेय चट्टानों, से बनी होती है तथा इसके मुख्य रासायनिक संघटक सिलिका (Si) और मैग्नीशियम (Ma) होते हैं। सिमा का औसत घनत्व 2.9 से 4.7 के बीच होता है तथा इसकी मोटाई 1000 से 2000 किमी. तक है।
(3)निफे (Nife)
सिमा के नीचे स्थित यह पृथ्वी की केन्द्रीय परत निकिल (Ni) एवं फेरम (Fe) से बनी होती है। भारी लौह पदार्थों का अस्तित्व आंतरिक भाग में चुम्बकीय गुण धर्म का संकेत होता है। चुम्बकीय गुण धर्म से पृथ्वी की कठोरता का प्रमाण मिलता है। इसका औसत घनत्व 12 है।

2.डेली की परिकल्पना

डेली द्वारा जिन तीन स्तरों को मान्यता दी गयी है वे हैं
(a)बाहरी परत — ये सिलिकेट से निर्मित है इसका घनत्व (3), मोटाई (1600 किमी.) है।
(b)मध्यवर्ती परत — यह लौहे एवं सिलिकेट से बनी है तथा इसका घनत्व (4.5—9), मोटाई (1280 किमी) है।
(c)केन्द्रीय क्षेत्र — इसका घनत्व (16), मोटाई (7040 किमी.)है तथा लौहे पदार्थां से बनी है।

3.हेरार्ल्ड जेफ्री परिकल्पना

जेफ्री द्वारा चार परतों की मान्यता दी गई है —
(a)बारही अवसादी शैल परत
(b)ग्रेनाइट परत
(c)थैकीलाइट अथवा डायोराइट परत
(d)ड्यूनाइट, पीरिडोटाइट या इक्लोजाइट परत।

4.ऑथ्रर होम्स की परिकल्पना

होम ने दो मुख्य परतों का उल्लेख किया है —
(a)ऊपरी परत अथवा भूपर्पटी, यह संपूर्ण सियाल की परत तथा सिमा के ऊपरी भाग से मिलकर बनी है।
(b)निचली परत (Substratum) अर्थात् पृथ्वी का आंतरिक भाग — जो सीमा के निचले भाग तथा नीफे से बनी है।
सियाल: सम्पूर्ण परत (1) भूपर्पटी (Crust)
सिमा: ऊपरी परत
निचली नीफे (2) अघः स्तर (Substratum)

5.वान डेर ग्राट  की परिकल्पना

ग्राट द्वारा भी चार परतों की पहचान की गई है —
(a)बाहरी सियाल पर्पटी, जिसका घनत्व 2.75 से 2.9 तक होता है। भूपर्पटी की मोटाई महाद्वीपीय भाग में 60 किमी तक तथा अटलांटिक महासागर के नीचे 200 किमी तक है। प्रशान्त महासागर क्षेत्र में इसका अभाव होता है।
(b)आंतरिक सिलीकेट मेंटल, जिसका घनत्व 3.1 से 4.75 तक होता है। इसकी मोटाई 60 किमी. से 1140 किमी. होती है।
(c)सिलीकेट एवं धातुओं का मिश्रित क्षेत्र, जिसका घनत्व 4.75 से 5 तक होता है। इसकी मोटाई 1140 किमी से 2000 किमी तक होती है।
(d)धात्विक नाभिक क्षेत्र का घनत्व 11 तथा मोटाई 2900 किमी. से लेकर 6371 किमी. तक होती है।
ऊपर वर्णित परिकल्पनाएँ प्रारंभिक विचारकों द्वारा प्रतिपादित की गई है। इनमें से अनेक विचारों को वर्तमान में अप्रासंगिक माना जाता है। भूकंपीय तरंगों की जटिल प्रकृति के विश्लेषण द्वारा वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के आंतरिक भाग के बारे में अधिक प्रामाणिक सूचनाएँ जुटाने में सफलता प्राप्त की है। इसके अलावा पृथ्वी की उत्पत्ति सम्बन्धी अनेक सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया गया है। इनसे पृथ्वी के अन्तराल के विषय में अनुमान लगाया जा सकता है। चैम्बरलिन की ग्रहाणु परिकल्पना (Plantestimal hypothesis), लाप्लास की निहारिका परिकल्पना (Nebular hypothesis), जेम्स जींस की ज्वारीय परिकल्पना (Tidal hypothesis), राबार्ट वगोचर का बिग बैंग सिद्धान्त (Big Bang theory) आदि महत्वपूर्ण हैं। जिनमें पृथ्वी की उत्पत्ति की व्याख्या की गई है। परन्तु ये सभी सिद्धान्त स्वयं विवादास्पद हैं। इनके आधार पर पृथ्वी के अन्तराल के विषय में किया गया अनुमान सत्य नहीं माना जा सकता है।

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