Skip to main content

Air masses and Fronts.

हैलो दोस्तों, आज हम लोग वायु राशियां और वाताग्र के बारे में अध्ययन करेंगे।
Hello friends, today we will study about Air masses and Fronts.

वायु राशियां (Air masses) :-
Air masses
Image source- Google Image by- nationalgeographic.org

वायुराशियाँ वायुमंडल का वह भाग हैं, जिसमें तापमान तथा आद्रता के भौतिक लक्षण क्षैतिज दिशा में एक समान होते हैं। ये वायु राशियां जिस मार्ग पर चलती हैं, उसकी तापमान और आद्रता सम्बन्धी दशाओं को परिमार्जित (Modify) करती हैं,  तथा स्वयं भी उनसे प्रभावित होती हैं।
विश्व के विभिन्न भागों के मौसम में परिवर्तन विभिन्न वायुराशियों की क्रिया प्रतिक्रिया के कारण होती हैं। एक वायुराशि का अनुप्रस्थ विस्तार कई हजार किमी और ऊपर की ओर क्षोभ मंडल तक होता हैं।
Air masses :-
Air masses are the part of the atmosphere in which the physical characteristics of temperature and humidity are uniform in the horizontal direction.  These air quantities modulate the temperature and humidity conditions of the path on which they travel, and are themselves affected by them.
 Changes in the weather in different parts of the world are caused by the action response of different airways.  The transverse expansion of an airway is several thousand km and upward to the troposphere.
वायु राशियों के प्रकार (Type of Air masses) :-
सामान्यतः वायु राशियां दो प्रकार की होती हैं -
1. शीतल या ठंडी वायु राशि।
2. गर्म या उष्ण वायु राशि।
जिन वायुराशियों का तापमान धरातल की तुलना में कम होता है, वे शीतल वायुराशियाँ कहलाती हैं। जिन वायुराशियों का तापमान धरातल की तुलना में अधिक होता हैं वे गर्म या उष्ण वायुराशियाँ कहलाती हैं।
वायु राशियों से उत्पन्न घटनाएं - 
वाताग्रों का निर्माण, क्षेत्रीय मौसम में परिवर्तन तथा वायुमंडलीय विक्षोभ (चक्रवात तथा प्रति चक्रवात)
Air masses
Image source- Google Image by- researchgate.net
Type of Air masses: -
 There are generally two types of air quantities -
 1. Cold or cold air mass.
 2. Hot or hot air mass.
 Air masses whose temperature is lower than the surface are called cold air mass.  Airs that have a higher temperature than the surface are called hot or hot air mass.
 Occurrences due to air masses -
 Construction of atmospheres, changes in regional weather and atmospheric disturbances (cyclones and per cyclones)
वाताग्र (Fronts) :-
जब दो विपरीत स्वभाव वाली वायु राशियां मिलती हैं, तो उन दोनों वायुराशियों के बीच 5 से 80 किमी चौड़ा एक संक्रमण प्रदेश बनता हैं। जिसे वाताग्र प्रदेश कहते हैं।
यह वाताग्र धरातलीय सीमा पर कुछ कोण पर झुका हुआ होता हैं। वाताग्र का ढाल पृथ्वी की अक्षीय गति पर आधारित होता हैं, जो कि धुर्वों की ओर बढ़ता हैं।
Fronts :-
 When two opposites are found, a transition zone between 5 and 80 km wide forms between those two airways.  Which is called Vatagra Pradesh.
 It is tilted at some angle on the ground plane.  The gradient of the fronts is based on the axial motion of the earth, which moves towards the axles.
Fronts
Image source- Google Image by- slideplayer.com
वाताग्र के प्रकार (Type of Fronts) :-
वाताग्र मुख्यत: चार प्रकार के होते हैं -
1. उष्ण वाताग्र (Warm Front) :-
जब गर्म व हल्की वायु आक्रामक होकर ठंडी व भारी वायु के ऊपर चढ़ जाती हैं तो उसे उष्ण वाताग्र कहते हैं। 
उष्ण वाताग्र का ढ़ाल 1:100  से 1:400 तक होता हैं। इसमें वर्षा दीर्घ कालीन परन्तु धीमी होती हैं।
2. शीत वाताग्र (Cold Front) :-
जब ठंडी व भारी वायु आक्रमक होकर गर्म वायु को ऊपर उठा देती हैं तो वह शीत वाताग्र कहलाता हैं। शीत वाताग्र का ढाल 1:25 से 1:100 तक होता हैं। इसमें वर्षा अल्पकालीन लेकिन तीव्र होती हैं।
3. अधिविष्ट वाताग्र (Occluded Front) :-
जब शीत वाताग्र तीव्र गति से चलकर उष्ण वाताग्र से मिल जाता है तथा गर्म वायु का धरातल से संपर्क समाप्त हो जाता हैं तो अधिविष्ट वाताग्र का निर्माण हो जाता है।
4. स्थाई वाताग्र (Stationary Front) :-
जब दो विपरीत वायुराशियाँ एक – दूसरे के समांतर प्रवाहित होती हैं तो स्थाई वाताग्र का निर्माण होता हैं।  इसमें वायुमंडलीय स्थिरता उत्पन्न हो जाती हैं।
Fronts
Image source- Google Image by- tes.com
Type of Fronts :-
 There are mainly four types of Vatagra -
 1. Warm Front :-
 When hot and light air aggressively climbs over cold and heavy air, it is called warm front.
 The slope of the warm air is from 1: 100 to 1: 400.  The rains are long but slow in this.
 2. Cold Front :-
 When cold and heavy air aggressively elevates hot air, it is called cold front. Cold gradient ranges from 1:25 to 1: 100.  The rains are short but intense.
 3. Occluded Front :-
 When the cold atmosphere moves at a rapid pace and joins the warm atmosphere and the contact of hot air from the ground ends, the overlying atmosphere is formed.
 4. Stationary Front :-
 When two opposite airflows flow parallel to each other, a permanent atmosphere is formed.  It produces atmospheric stability.
                                                    Thank You.



Comments

Popular posts from this blog

Ocean Currents.

हैलो दोस्तों, आज हम लोग महासागरीय धाराओं के बारे में अध्ययन करेंगे। Hello friends, today we will study about ocean currents . महासागरीय धाराएं :- महासागर के जल के सतत एवं निर्देष्ट दिशा वाले प्रवाह को महासागरीय धारा कहते हैं। एक निश्चित दिशा में बहुत अधिक दूरी तक महासागरीय जल की एक राशि के प्रवाह को महासागरीय जलधारा (Ocean Current) कहते हैं. इन्हें समुद्री धाराएँ भी कहते हैं। वस्तुतः महासागरीय धाराएं, महासागरों के अन्दर बहने वाली उष्ण या शीतल नदियाँ हैं। प्रायः ये भ्रांति होती है कि महासागरों में जल स्थिर रहता है, किन्तु वास्तव मे ऐसा नही होता है। महासागर का जल निरंतर एक नियमित गति से बहता रहता है और इन धाराओं के विभिन्न रूप देखने को मिलते हैं। प्राकृतिक धारा में प्रमुख अपवहन धारा एवं स्ट्रीम करंट होती हैं। एक स्ट्रीम करंट की कुछ सीमाएं होती हैं, जबकि अपवहन धारा के बहाव की कोई विशिष्ट सीमा नहीं होती। पृथ्वी पर रेगिस्तानों का निर्माण जलवायु के परिवर्तन के कारण होता है। उच्च दाब के क्षेत्र एवं ठंडी महासागरीय जल धाराएं ही वे प्राकृतिक घटनाएं हैं, जिनकी क्रियाओं के फलस्वरूप सैकड़ों

Tide and Ebb.

ज्वार-भाटा:- सूर्य और चन्द्रमा की  आकर्षण शक्तियों  के कारण सागरीय जल के  ऊपर उठने तथा नीचे गिरने  को  ज्वार -भाटा  कहा जाता हैं। इससे उत्पन्न तरंगो को  ज्वारीय तरंगे  कहा जाता हैं। Tide-Ebb:- The rising and falling of ocean water due to the attractiveness of the sun and the moon is called tides.  The waves resulting from this are called tidal waves. सागरीय जल  के  ऊपर उठकर तट की ओर बढ़ने  को  ज्वार (Tide)  तथा इस समय जल के उच्चतम तल को  उच्च ज्वार (High Tide)  कहते हैं। सागरीय जल के  तट से टकराकर वापस लौटने  को  भाटा (Ebb)  कहते हैं, तथा उससे निर्मित निम्न जल को  निम्न ज्वार (Low Tide)  कहते हैं। ज्वार -भाटा   सूर्य व चन्द्रमा का गुरुत्वाकर्षण बल  तथा  पृथ्वी का अपकेंद्रीय बल  के कारण आता हैं। गुरुत्वाकर्षण व अपकेंद्रीय बलों  के प्रभाव के कारण प्रत्येक स्थान पर  12 घंटे  में ज्वार आना चाहिए लेकिन यह  चन्द्रमा के सापेक्ष पृथ्वी के गतिशील  होने के कारण प्रतिदिन लगभग  26 मिनट  की देरी से आता हैं।  The rise of ocean water and moving towards the coast is called Tide and at