हैलो दोस्तों, आज हम लोग वर्षा, वर्षा के प्रकार, वितरण और प्रभावित करने वाले कारकों के बारे में अध्ययन करेंगे।
Hello friends, today we will study about rainfall, types of rainfall, distribution and factors affecting it.
वर्षा(Rainfall) :-
Hello friends, today we will study about rainfall, types of rainfall, distribution and factors affecting it.
वर्षा(Rainfall) :-
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समुद्रों, झीलों आदि का जल सूर्यातप से गर्म होकर भाप के रूप में ऊपर उठता हैं, इसे वाष्पीकरण कहा जाता हैं। यह वाष्पित जल ऊपर वायुमंडल में जाकर ठंडा होने लगता हैं। जिससे इसमें संघनन की क्रिया होने लगती हैं और मेघों का निर्माण होता हैं।
जब मेघों में वाष्पित जल की मात्रा अधिक हो जाती हैं तो वो इसे संभाल नहीं पाते और वर्षा हो जाती हैं।
Rainfall :-
The water of the oceans, lakes, etc., heated by the sun rises in the form of steam, it is called evaporation. This evaporated water starts cooling in the atmosphere. Due to which the action of condensation starts and clouds are formed.
When the amount of evaporated water in the clouds becomes high, they cannot handle it and it rains.
वर्षा के प्रकार :-
उत्पत्ति के आधार पर वर्षा को तीन प्रकारों में वर्गीकृत किया गया हैं।
- संवहनीय वर्षा (Convectional Rainfall)
- पर्वतीय वर्षा (Orographic Rainfall)
- चक्रवाती वर्षा (cyclonic Rainfall)
Types of Rainfall :-
Based on the origin, rainfall is classified into three types.
1. Convectional Rainfall
2. Orographic Rainfall
3. Cyclonic Rainfall
1. संवहनीय वर्षा :-
Thank You.
Based on the origin, rainfall is classified into three types.
1. Convectional Rainfall
2. Orographic Rainfall
3. Cyclonic Rainfall
1. संवहनीय वर्षा :-
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जब भूतल बहुत गर्म हो जाता है तो उसके सम्पर्क में आने वाली हवाएं गर्म होकर ऊपर उठती हैं। ये उठती हवाएं ही संवहनीय हवाएं कहलाती हैं। अधिक ऊंचाई पर पहुंचने पर ये हवाएं ठंडी हो जाती हैं।
जब इनका तापमान वायुमंडल के तापमान के बराबर हो जाता हैं तो संघनन की क्रिया शुरू हो जाती हैं। जिससे काले कपासी वर्षी मेघों का निर्माण होता हैं। जिससे तेज वर्षा होती हैं। इस प्रकार की वर्षा को संवहनीय वर्षा कहते हैं।
इस प्रकार की वर्षा भूमध्यरेखीय भाग में अधिक होती हैं। वहां पर सूर्य की किरणें सीधी पड़ती हैं। जिससे जल तेजी से वाष्पित होकर ऊपर उठता हैं। दोपहर बाद 3 बजे से 4 बजे तक घनघोर वर्षा होती हैं।
1. Convectional Rainfall :-
When the surface becomes very hot, the winds coming into contact with it rise and rise. These rising winds are called convective winds. On reaching higher altitudes, these winds cool.
When their temperature is equal to the temperature of the atmosphere, the process of condensation starts. Due to this, black cloudy clouds are formed. Due to which there is strong rainfall. This type of rainfall is called sustainable rainfall.
This type of rainfall is more in the equatorial part. There the sun's rays fall straight. Due to which water evaporates rapidly and rises up. Later in the afternoon, there is heavy rainfall from 3 pm to 4 pm.
जब जलवाष्प से लदी हुई गर्म वायु के मार्ग में कोई पर्वत या अवरोध आ जाता हैं तो ऊपर उठती हुई हवा ठंडी हो जाती हैं। जिससे उसमें जल वाष्प का संघनन हो जाता है। इसके बाद वर्षा होने लगती हैं जिसे पर्वतीय वर्षा कहते हैं।
यह वर्षा उन्ही क्षेत्रों में अधिक होती हैं, जहाँ पर्वत श्रेणी समुद्र तट के निकट तथा उसके समान्तर हो। विश्व की अधिकांश वर्षा इसी रूप में होती हैं।
ऊंचाई बढ़ने के साथ -साथ वर्षा की मात्रा भी बढ़ती जाती हैं। जिस पर्वतीय ढ़ाल पर वर्षा होती हैं, उसे वर्षा पोषित या पवनाभिमुख क्षेत्र कहते हैं।
जबकि विमुख ढ़ाल पर वर्षा नहीं होती हैं। इसे वृष्टि छाया प्रदेश कहते हैं।
2. Orographic Rainfall :-
When a mountain or barrier comes in the way of hot air laden with water vapor, the rising air becomes cold. This causes condensation of water vapor in it. After this, rainfall starts which is called mountain rain.
This rainfall is more in those areas where the mountain range is near and parallel to the beach. Most of the world's rainfall is in this form.
As the height increases, the amount of rainfall also increases. The mountain slope on which the rain falls, it is called rain fed or rainfed area.
Whereas there is no rain on the opposite slope. It is called the rain shadow region.
जब दो विपरीत स्वभाव वाली ठंडी और गर्म हवाएं आपस में टकराती हैं तो वाताग्र का निर्माण होता हैं। इसी वाताग्र के सहारे गर्म हवा ठंडी हवा के ऊपर चढ़ जाती है और संघनन की प्रक्रिया शुरू हो जाती हैं। जिसके परिणाम स्वरूप चक्रवाती वर्षा होती हैं।
इस तरह की वर्षा अधिकांशः शीतोष्ण कटिबंध में होती हैं। इस प्रकार की वर्षा में संघनन मंद गति से होता हैं। इसीलिए ये विस्तृत क्षेत्र में दीर्घकाल तक होती रहती हैं।
शीतकाल में भारत में भी पश्चिम से आने वाले चक्रवातों से उत्तरी भारत में चक्रवाती वर्षा होती हैं।
3. Cyclonic Rainfall :-
When two opposite-nature cold and warm winds collide, the atmosphere is created. With the help of this atmosphere, the hot air rises over the cold air and the process of condensation starts. As a result of which cyclonic rain occurs.
This type of rainfall is mostly in the temperate tropics. In this type of rain, condensation is slow. That is why they continue for a long time over a wide area.
In winter, cyclonic rain in northern India is caused by cyclones coming from the west in India.
वर्षा का वितरण :-
विषुवत् रेखीय प्रदेश, वाणिज्य वायु के क्षेत्र में पूर्वी किनारों पर अधिक वर्षा वाले क्षेत्र हैं।
शीतोष्ण क्षेत्र वाले देशों के पश्चिमी तट, जहाँ चक्रवातीय और आंशिक रूप से पर्वतीय वर्षा होती है। इन क्षेत्रों में सालोंभर वर्षा होती है।
धरातल पर कम वर्षा के क्षेत्र अधिक हैं. इस प्रकार विश्व में असमान वर्षा (uneven rainfall) का वितरण देखा जाता है। मरुभूमि में नाममात्र की वर्षा होती है क्योंकि वे शुष्क क्षेत्र होते हैं.
मानसून-प्रदेश में तथा उष्ण क्षेत्र के कुछ भागों में वर्षा में गर्मी विशेष रूप से होती है। इसी तरह भूमध्यसागर के आसपास और भूमध्यसागरीय जलवायु के प्रदेशों में केवल जाड़े में वर्षा होती है।
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Distribution of Rainfall :-
The equatorial region, the area of commercial air, has more rainy areas on the eastern edges.
West coast of temperate countries where cyclonic and partly mountainous rainfall occurs. These areas receive rainfall throughout the year.
There are more areas of less rainfall on the ground. Thus the distribution of uneven rainfall is seen in the world. There is nominal rainfall in the desert because they are dry areas.
In the monsoon region and in some parts of the warm region, the heat is particularly hot in the rain. Similarly, rainfall occurs only in the winter around the Mediterranean Sea and regions of the Mediterranean climate.
वर्षा को प्रभावित करने वाले कारक :-
वर्षा को प्रभावित करने वाले कारक निम्न हैं।
- अक्षांश – निम्न अक्षांश में अधिक वर्षा होती हैं जबकि उच्च अक्षांश यानी कम वर्षा होती हैं। इसका कारण यह है की निम्न अक्षांशों में वाष्पीकरण तेजी से होता है।
- ऊँचाई – मैदान की अपेक्षा पहाड़ों पर अधिक वर्षा होती है। इसका कारण यह है कि पहाड़ों के सहारे जलवाष्प से भरी हवा को घनीभूत होने का मौका मिलता है। लेकिन वृष्टिछाया-क्षेत्र में वर्षा की कमी रहती है।
- प्रचलित पवन – यदि पवन समुद्र से आते हैं तो अधिक वर्षा लाने वाले होते हैं। इसके विपरीत यदि प्रचलित पवन स्थल से आते हैं तो सूखे और वर्षा नहीं करने वाले होंगे।
- जलधाराएँ – ठंडी जलधारा से होकर बहने वाली वायु में वर्षा करने की शक्ति नहीं होती. इसके विपरीत गर्म जलधारा की ओर चलने वाली वायु अधिक वर्षा करती है।
- समुद्र से दूरी – जो स्थान समुद्र से जितना ही दूर होगा वहाँ उतनी ही कम वर्षा होती है।
इनके अतिरिक्त जल और स्थान की स्थिति, दोनों के अलग-अलग तापक्रम, पर्वतश्रेणियों की दिशा, वायुभार की पत्तियों का उत्तर-दक्षिण खिसकना आदि भी वर्षा पर प्रभाव डालते हैं।
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Factors affecting rainfall: -
The factors that influence rainfall are:
Latitude - Lower latitudes receive more rainfall while higher latitudes mean less rainfall. The reason for this is that evaporation occurs rapidly in the lower latitudes.
Altitude - The mountains receive more rainfall than the plain. The reason for this is that the air filled with water from the mountains gives a chance to condense. But there is a lack of rainfall in the rain-shadow area.
Prevailing Wind - If the winds come from the sea, they are going to bring more rain. Conversely, if they come from the prevailing wind site, there will be no drought and no rain.
Water streams - Air flowing through cold water does not have the power to rain. Conversely, the air moving towards hot water receives more rainfall.
Distance from the sea - The farther away from the sea the less rainfall there is.
Apart from these, the water and location conditions, the different temperatures of the two, the direction of the mountain ranges, the north-south movement of the leaves of the air load, etc. also affect the rainfall.
वर्षा को एक विशेष मापक द्वारा मापा जाता है। जिसे वर्षा मापक (Rain Gauge) कहते हैं। इसे मि.मी में मापा जाता हैं।
Measurement of rainfall: -
Rainfall is measured by a special measure. Which is called Rain Gauge. It is measured in mm.
कृत्रिम वर्षा :-
- एक विशेष प्रकार की प्रक्रिया द्वारा विशेष प्रकार के मेघों को कृत्रिम उपायों से संतृप्त करके वर्षा कराई जाती हैं। इसीलिए इसे कृत्रिम वर्षा या मेघों का कृत्रिम बीजारोपण भी कहा जाता हैं।
- इस प्रकार का प्रयोग सबसे पहले विन्सेंट जे. शेफर और इरविग लैग्मयूर नामक दो अमेरिकी वैज्ञानिकों द्वारा 1946 में किया गया था। इसमें इन्होने ठोस कार्बन डाई ऑक्साइड (शुष्क बर्फ) का प्रयोग किया था।
- कृत्रिम वर्षा का सफल प्रयोग इजराइल व रूस द्वारा भी किया गया। इसके लिए इन्होने सिल्वर आयोडाइड का प्रयोग किया था।
- भारत में भी गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में प्रोजेक्ट रेन ड्राप चलाए गए थे। परन्तु ये प्रयोग अधिक सफल नहीं रहे।
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Artificial Rain: -
A special type of process is saturated with special measures to rain the clouds. That is why it is also called artificial rainfall or artificial seed planting of clouds.
This type of experiment was first used by Vincent J. Was done in 1946 by two American scientists named Shaffer and Irwig Lagmayur. In this, he used solid carbon dioxide (dry ice).
Artificial rainfall was also successfully used by Israel and Russia. For this, he used silver iodide.
Project rain drops were also conducted in Saurashtra region of Gujarat in India. But these experiments were not very successful.
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